♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />~~~~~~~~~~~~~<br /><br />वीडियो जानकारी:<br />पार से उपहार शिविर, 19.04.20, ग्रेटर नॉएडा, भारत<br /><br />प्रसंग: <br />यथा ह्नुवत्सरं कृष्यमाणमप्यदग्धबीज क्षेत्र पुररेवावपन-काले गुल्मतृणवीरुद्धिर्गह्नमिव<br />भवत्येवमेव गृहा श्रम: कर्मक्षेत्र यस्मिन्न हि कर्माण्युत्सीदन्ति यदयं कामकरण्ड एष आवसथ:॥<br /> <br />जिस प्रकार यदि किसी खेत के बीजों कों अग्नि द्वारा जला न दिया गया हो तो प्रतिवर्ष जोतने पर भी खेती का समय आने पर वह फिर झाड़-झंखाड़, लता और तृण आदि से गहन हो जाता है उसी प्रकार यह गृहस्थाश्रम भी कर्मभूमि है, इसमें भी कर्मो का सर्वथा उच्छेद कभी नहीं होता; क्योंकि यह घर कामनाओं की पिटारी है।<br /><br />~ परमहंस गीता (अध्याय ५, श्लोक ४ )<br /><br />~ गृहस्थ में रहते हुए आत्मस्थ कैसे रहे?<br />~आत्मस्थ कहने का क्या आशय है?<br />~आत्मस्थ होकर कैसे जीया जा सकता है?<br />~आत्मस्थ आदमी की पहचान क्या है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~~~~~~~~~